ओ रे इंसान तू क्यों रुका है?
किन शर्तों से तू बंधा है?
चल आज हवाओं का रूख मोड़ते हैं।
आ, आज अपन पंख खोलते हैं।।
हालातों से न तू डर,
तेरे अंदर हैं वो सारे हुनर,
दिल लगा के तो देख तू एक बार ,
कसम खुदा की झुक जाएगा वो आसमां भी हजार बार।।
हिम्मत कर, रोना छुट जाएगा
कदम बड़ा, उस ईश्वर का सर भी झुक जाएगा
समाज की बंदिश तोड़ के तो देख
तेरे दुश्मन का दिल भी तू जित जाएगा ।।
क्यों कुंठित कर रखा है तुमने अपने आप को?
क्यों भरते नहीं “जिगर” से अपने सपनों को?
चल आज हवाओं का रूख मोड़ते हैं।
आ, आज बस एक बार, खुद के लिए नहीं तो खुदा के लिए ,अपन पंख खोलते हैं।।
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